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[ २७५ ] करते हुए प्राणी नष्ट हो रहे हैं जल के बबूले के समान विनाशीक है उनकी दृष्टि में तुम भले भी कहलाने लगो तब भो तुम्हें क्या कुछ मिल सकता है ? नहीं, क्योंकि शांति और सुख तो आकिञ्चन्य से प्राप्त होता है।
卐 हैं १३-२५०. रे मनोहर ! तू अकिञ्चन है, तेरा जगत में कोई नहीं, जगत का तू कोई नहीं, सर्व ओर से बुद्धि को हटा
और शान्ति की छाया में बैठकर भ्रम का संताप दूर कर इसी में तेरी भलाई है।
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