________________
[ २७७ ] के कारण जो क्षोभ नहीं होना है वही तो क्षमा है।
६-८६७. क्षमा गुण आने पर सभी गुण शोभा को प्राप्त
होते हैं, क्षमा विना आत्मगुणों का विकास नहीं होता ।
७-६६. मा पृथ्वी को कहते हैं, क्षमारान् पृथ्वी की तरह
गम्भीर होता है, जैसे पृथ्वी पर खोदने कूटने कूड़ा डालने आदि अनेक उपद्रव होने पर भी सहनशील है इसी तरह क्षमावान् पुरुष भी निन्दा प्रहार गाली आदि अनेक उपसर्ग होने पर भी अडोल रहता है तभी तो वह महात्मावों की दृष्टि में आदरणीय है।...क्षमावान् पुरुष स्वयं सुखी रहता है अतः क्षमाशील ही रहो ।
८-६००. आत्मा क्षमा अपने आप पर करता है, कोई किसी
को क्षमाभाव नहीं देता, यदि कोई अपने में क्षमाभाव उत्पन्न कर ले तो वह व्यक्ति दूसरे को क्षमा को बात कह सके या न कह सके वह तो क्षमावान हो गया। हां ! दामावान् पुरुष के यदि दूसरे व्यक्ति का ध्यान रहे तब वह उससे क्षमा की बात कहे विना रहता नहीं ।