________________
[ २५७ ]
५६ चर्या
१ - २६. स्वाध्याय, ध्यान, पठन पाठन आदि कार्यों में समय बिताते ही रहो; बेकार बैठे रहने में दुष्कल्पना का उद्भव होने लगता ।
585
२-७६. स्वाध्याय ध्यान, भक्ति करने की इच्छा करने वाले पुरुषों को ऊनोहर तप करना चाहिये । फ्र फ्र
३ - ७७. असंयम, भोगासक्ति व करने योग्य कार्य को स्वयं न करने से तन मन धन तीनों की बरबादी है ।
फ ४ - १५८, मधुमांस रहित, रसापेक्षारहित अपनी अप्रयोजकता से निर्मित भिक्षाचर्या से दिन में ऊनोदर एक बार किया गया आहार ही योग्य आहार है; विरक्त गृहस्थों को भी ऐसा ही चाहार करना चाहिये केवल भिक्षाचर्या का उन्हें आदेश नहीं इसलिये जो अनायास भोज्य आहार प्राप्त हो उसे भोजन के समय मौनपूर्वक किसी वस्तु की