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मत छोड़ो, सत्पुरुष वही है जो मिथ्याविश्वास व कषाय से दूर रहते हैं ।
5 ॐ 5 १०- ८२२. सज्जन पुरुषों के सङ्ग से पाप बुद्धि नष्ट होकर पुण्य परिणाम बन जाता है; जैसे लोहा पारस पाषाण के सङ्ग से सुवर्ण बन जाता है, सत्सङ्ग का आदर करो 1
ॐ
११ - ४०४. मनोहर ! तुम जिस सहबास में रहो - तुम्हारा व सभी का यह सहवाससिद्धान्त होना चाहिये - जिस की जब तक इच्छा हो तब तक साथ रहे, जब इच्छा न हो चला जावे जब इच्छा हो आजावे, इसी तरह तुम्हारी जब इच्छा हो जावो और ग्रावो । संकोच, अन्वेषण चिन्ता और समालोचना की आवश्यकता न रहे । ॐ म १२ - ८६४. सारा दुःख तो विकल्पों का ही है, विकल्प न हों तो सुख है, विकल्प तब न हों जब कषाय न हो, कषाय तत्र न हो जव तत्त्वज्ञान हो, तचज्ञान तब हो
सत्संग का उपक्रम
जब तत्वज्ञानी का संग पाये इसलिये करते रहो ।
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