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[ २२ । सत्संग में करीब ३ वर्ष से सदैव रहते हैं सप्तम प्रतिमा का व्रत पालन करते हैं । श्री व ब्रह्मानन्द जी अनेक शास्त्रों के ज्ञाता हैं और सहिष्णु पुरुष हैं। श्री व रामानन्द जी व जयानंद जी भी अपने बैत पालन मैं तत्पर रहते हैं । ये सब आपके सत्संग में रहकर स्वयं का भी कल्याण कर रहे हैं और सर्व. साधारणं का मार्ग प्रदर्शन कर रहे हैं। और क्या क्या:
त्यागी' भी बहुत से होते हैं । विद्वानों को भी कमी नहा, । है। परन्तु त्यागी होने के साथ ही साथ.. उच्चकोटि का, विद्वान भी हो ऐसे विरले ही होते हैं । पूज्यं क्षुल्लक श्री वर्णी' जी भी उन्हीं में से हैं। जिस समय पूज्य गुरुवर्या श्री १०५ क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी मेरठ से इटावा को, प्रस्थान कर रहे थें इस समय आपके विषय में जो शब्द उन्होंने कहे थे भूले से नहीं भूलाये जा सकते । उन्होंने उपस्थित जनता, को सम्बोधित करते हुए कहा था "मैं तुमको एक रत्न सौंपे जा, रहा हूँ, भले प्रकार रक्षा करना इसकी । ऐसा त्यागी और ऐसा विवाने तुमको कहीं न मिलेगा।
ऑपकी प्रवचैने शैली को जितनी प्रशन्सा की. जाय थोड़ी है। जिस समय आपके हृदय की आवाज थोताओं तक पहुंचती है तो उनके हृद-तन्त्री के तार झनझना उठते हैं और वह आनन्दं विभोर हो उठते है, मन्त्र मुग्ध से हो जाते हैं । वाणी में जाद है, कंठ में मधुरत्ता है, चेहरे पर शान्ति, हृदय निष्कषाय,
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