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[२३ ] निष्कपट-कैसे.न श्रोताओं पर प्रभाव हो समझ में नहीं आता।। एक बार याद है दशलाक्षणी पर्व में मुजफ्फरनगर, में आप , तत्वार्थ सूत्र पर प्रवचन कर रहे थे। २ घंटे तक प्रवचन हुआ।. स्वर्गों का व लोकोन्ति देवों का वर्णन था। सभी श्रोता ,चित्रलिखित से बैठे थे। उस समय तो ऐसा प्रतीत हुआ कि वास्तव में स्वर्ग में ही बैठे हुए हैं । अध्यात्म-कथनी जिस समय करते हैं आप भी मस्त हो जाते हैं और श्रोताओं को कुछ, क्षण के लिये संसारी झंझटों से मुक्त कर देते हैं। सीधा-साधा सरल भाषा में आपका उपदेश होता है । स्त्री, बच्चे, युवक, ,वृद्ध-सब कोई समझते है, ग्रहण करते हैं अपना कल्याण करते हैं।
शान्ति की तो आप प्रतिमूर्ति ही हैं। क्रोध तो आपको छू भी नहीं गया है। सदैव प्रसन्नतचित्त रहते हैं । क्रोध की एक रेखा भी कभी आपके चेहरे पर दृष्टिगोचर नहीं होती। हंसते हैं और हंसी हंसी में ही पर का व स्वयं का कल्याण करते रहते हैं।
गुण तो इतने हैं, आप में जिनका वर्णन करना मेरी शक्ति के बाहर है। फिर भी जो कुछ बना लिख दिया।
अन्न में मेरी तो हार्दिक-भावना है, कि आपका , स्वास्थ ; सदैव ठीक रहे जिस से आप स्वयं का भी कल्याण कर सके