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[ २४६ ] परिणति हो ऐसा दिन पाने पर आत्मा की अभूतपूर्व जागृति होती है।
४-७४३. मन वचन काय के प्रयत्न को रोक कर आत्मा की सहज स्थिति का जो अनुभव होता है उसमें महान् आनन्द है, परन्तु जिन्हें इस आनन्द का अनुभव नहीं वे ही विषयों की सेवा में आनन्द की श्रद्धा करते हैं।
५-७७७. जिस का उपयोग शुद्धात्मा की ओर लग गया है उसका संसार विकार अवश्य दूर होगा और वह अनन्त सुख पावेगा।
६-७७६. आत्मन् ! क्या तूने शुद्धात्मस्थिति को उत्तम मंगल शरण समझ पाया या नहीं ? यदि समझ लिया तब वेड़ा पार है। समझ चुकने की परीक्षा का लक्षण एक यह भी है जो "यह न हुआ वह न हुआ" यह विकल्प नहीं रहना चाहिये।
७-२२७. (वर्तमान परिणाम को लक्ष्य में रखकर बार
बार सोचो) मेरा यह स्वभाव नहीं--मेरा यह स्वभाव