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[ २५४ । ध्यान ही नहीं करता; तत्त्व से देखो-तो हिंसक तो जीवित ही बुरी तरह मरता जा रहा है ।
१२-६१७. बलि करने वालों की भी अज्ञानता और क्रूरता
का ठिकाना ही क्या ? ओह !! बेचारे तत्त्वज्ञान से कोसों दूर हैं अतः महा गरीब हैं और खुद ही अपने आप संसार, महापाप, महाक्लेश व दुर्गतियों के गड्ढ़े में गिर रहे हैं अतः घोर अंधेरे में हैं,आह .! इनके मन में या जीभ पर यह बात नहीं आती क्या ? कि जैसा अपना जी तैसा सबका जी । हे भगवन् ! इनको सुमति प्राप्त हो...सबका...भला हो ।