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४ -७८६ इन्द्रियों को वश किये बिना मनुष्य जीवन व्यर्थ है, असंयम में तो अनादिकाल व्यतीत किया, सब भवों में मिलता रहा, मनुष्य क्यों हुए ?
फ्रं ॐ फ
५ - ८४३. संयम रत्न पाने के लिये वाह्य वस्तु की क्या आवश्यकता निजज्ञान समुद्र में गोता लगावो और संयम
रत्न पाला ।
फ्र ॐ क
६ - ८४८, रागादि से दूर रहकर आत्मा में संयमित रहना संयम है, जब तक संयम न हो वाह्यव्रत पालना धोखा है ।
फॐ ७- ८६२. इन्द्रिय संयम सर्व व्रतों का मूल है, जिसकी इन्द्रिय वश नहीं उसका वाह्यत स निष्फल है तथा
वह शान्ति भी नहीं पा सकता |
5 ॐ फ
८- ३४७. व्रत लेने के बाद व्रत का पूर्ण पालन करो यदि परिणाम घट जावे तत्र व्रत में कमी मत करो किन्तु परिणाम घटाने में कारणभूत संकल्प विकल्प को नष्ट करने का यत्न करो ।
फ्रॐ क