________________
[ २३७ ]
X4Y
५१ संयम
१-६७८. मनुष्य का धन संयम है, संयम से ही मानव
धीर, गम्भीर व निःशल्य बनता है।
२-६७६. संयमी ही सुखी है, संयम दोनों प्रकार का हो
१-इन्द्रियसंयम, २-प्राणसंयम । दोनों प्रकार के संयम अहिंसा ही तो है, अहिंसा से प्राणो सत्य विजय प्राप्त करता है, विलम्ब तो जरूर होता है पर निरुपम निररधि सुख प्राप्त करता है।
३-५१३. ये पांचों इन्द्रियां बहिर्मुख है, ये ज्ञान और सुख
नहीं पैदा कर सकते, ज्ञान और सुख अन्तः (आत्मा) का गुण है सो इन्द्रियां अन्तमुख हैं नहीं अतः निश्चित है - ज्ञान और सुख के लिये इन्द्रियनिरोध भावश्यक है।
+ ॐ म