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और कुछ नहीं होता । कदाचित् इच्छा के अनुकूल उसी की होनहार से कुछ हो भी जावे तो भी राग पङ्क लपेट देने के सिवाय आत्मा को और क्या मिल जाता ?
२१-६६४ इच्छा का न रहना ही सुख है, सुख का दूसरा
उपाय तीन काल में अन्य हो नहीं सकता, यदि सुख चाहते हो तब इच्छारहित बनने के प्रयत्न में लगो; दूसरा कोई उपाय मत सोचो।
卐 ॐ 卐
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