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और सर्व बाह्य कार्य पाप हैं, वाह्य कार्य का विकल्प पाप है।
७-६४३. जब समस्त विकल्प रुक जाते हैं तब आत्मा में
सहजभाव रह जाता है जो समस्त दुःखों से रहित है, सकल्प और विकल्प आत्मा के अनर्थ करने वाले हैं दूसरा कोई आत्मा का बाधक नहीं।
८-६६७. "रत्तो बंधदि कम्मं मुश्चदि जीवो विरागसंपत्तो।
एसो जिणोवदेसो तहमा कम्मेसु मा रज ॥" इस जिनोपदेश के पालन बिना आत्मा कभी शान्ति नहीं पा सकता इसलिये सर्व विकल्प छोड़कर इस ही के पालन में लीन हो जावो, अन्य कुछ मत सोचो।
ह-६७१. वाह्य पदार्थ वाह्य ही रहे। मुझे उनसे कोई आशा
नहीं, कोई भी पदार्थ आकुलता का ही कारण बनकर दूर दूर रहता है, न तो शान्त करता और न अपना वनता, इसलिये आत्मस्वरूप रहो पर का कुछ भी विकल्प मत करो।