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४५ उपेक्षा
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१-३४३. मालूम होता है कि
मर जाऊँ मांगू नहीं अपने तन के काज । पर उपकार के कारने नेक न आवे लाज ॥
यह दोहा अपनी लाज व दीनता के छुपाने के वास्ते बना दिया गया है या इस दोहे से अपनी सफाई ही पेश की ! वस्तुतः पर उपकार के अर्थ भी मांगने में लाज या दीनता या न देने पर संक्लेश आये बिना रहता नहीं अतः निरपेक्षता ही उनम सुखमार्ग है।
ॐ ॐ ॐ . २-३०३. मनोहर ! तत्वज्ञान का फल उपेक्षा है, उपेक्षा का
फल शान्ति है, तुम्हारे जब तत्त्वज्ञान (भेदविज्ञान) प्रकट हुआ तव कोई शक्ति नहीं जो तुम्हें एकान्त में भी विचलित कर सके, कुछ समय धय॑ध्यान के अर्थ एकान्त में भी बितावो, समागम सार्वकालिक ठीक नहीं, राग के साधन मत जुटावो, किसी की दृष्टि में भले बनने की