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[- २०७ ] बात सुनता है, देखता है विचारता है वह कालान्तर में उसके अनुरूप होजाता है इसलिये कल्याण की बात सुनो, देखो, विचारो, शोक व पाप की बात मत सुनो मत देखो मत विचारो ।
ॐ ॐ ॐ १४-४३१. मान लो तुम्हें दुनिया का कोई मनुष्य नहीं जानता, तुम अकेले एक जगह पड़े हो, कोई चर्चा करने वाला नहीं है,...तो... ऐसी हालत तुम्हें पसंद है ? बुरी तो नहीं लगती ? यदि विपाद नहीं तो कल्याण के पात्र हो ।
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