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[ २०३ । विपत्ति आवे फिर भी यदि हर बात की सचाई रहेगी, नियम से विजय.होगी और परमसुख का अनुभव होगा।
५-५६१, किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिये संकल्प को दृढ़ता होना चाहिये, बार वार विचार करने से वह दृढ़ता
आती है, यह भी काम हो वह भी काम हो या न हो अथवा हो हो आदि-विविध विचार ग्रस्त निर्वाध मार्ग पा नहीं सकता अतः यदि सुख चाहो तो अपना श्रेष्ठ लक्ष्य बनाने के लिये हित अहित का खूब विचार कर लो और जो हितरूप हो उसके लिये दृढ़ सकल्प कर लो।
६-५६३, त्यागी हुए तब समाधिभाव की सिद्धि के अतिरिक्त अन्य कार्य का लक्ष्य नहीं बनायो; लोग तो उद्धार परोपकार शुभोपयोग आदि शब्द कह कर राग की आग लगाकर अलग ही रहते हैं, जलना पड़ना है तुम्हें । यह सोचना भूल है कि निरन्तर ज्ञानोपयोग नहीं रह सकता रह सकता, इतना जरूर है-कभी मंद कभी तोत्र ।
७-६०३. चिन्तामणि तो चैतन्यमात्र का नाम है जिसके चिन्तवन से मनचाहे अर्थ की सिद्धि होती है, इस चैत