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। ४४ कल्याण
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१-३५६. रागादिक को हीनता होना ही कल्याण है इसी
का ध्यान रखो इसी का प्रयास करो, यही बुद्धिमत्ता है।
२-५०३, ब्रह्मचर्य, विद्याभ्यास और विनय विद्यार्थियों की
उन्नति के मूल हैं, यह ही सच्चा जीवन बनाने की त्रिपुटी
३-५०६. रागद्वेष रहित आत्मा की परिणति होना ही आत्मा
का उद्धार, कल्याण व सुख एव धर्म है सो वह आत्मा से पृथक नहीं है, ऐसी आत्मा को, आत्मा, आत्मा के द्वारा, आत्मा के लिये, अपनी अशुद्ध परिणति से हट कर आत्मा में स्वयं करता है, अतः सुख के लिये अन्य सामग्री की खोज में व्यग्र होकर परतन्त्र मत बनो अपना उत्साह करो।
४-५०८. भलाई का मूल सचाई है, चाहे आक्षेप हों या