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[ १६८ ] 8-८२१. जो विषयों की आशा के दास है वे सबके गुलाम बन जाते हैं, यदि गुलामी का दुःख नष्ट करना हो तो आशा का नाश कर दो।
२०-८३२. अरी आशा तूने इतने पाप कराये, अब भी
सन्तुष्ट हुई या नहीं ? यदि सन्तुष्ट हो गई तो अब तुम जाओ, यदि सन्तुष्ट नहीं हो सकती तो तुझे लाभ क्या ? जायो।
卐 ॐ ॥