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४३ धैर्य
१- ३७०. ऐसी धीरता पैदा करो जो दूसरे की मन वचन काय की प्रतिकूल चेष्टा होते हुए भी अक्षुब्ध रह कर उसे समझा सको ।
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२-४३६. यदि किसी ने मूर्ख कहा और उस मूर्ख शब्द को सुनकर हम अपने स्वभाव को छोड़कर क्षोभ में आगये तो हम उससे भी मूर्ख निकले; अतः कोई कुछ भी कहे हमें तो अपने ही धैर्य में निवास करना चाहिये । 5 送5
३- ४८३. बाह्य पदार्थ के लाभ हानि से तुम्हारा लाभ हानि नहीं, अतः वाह्य परिणति से किञ्चित् भी हर्प विषाद न करो, धीर व उपेक्षक बनो ।
फॐ फ
४ - ५२८. अधीरता आत्मशुद्धि का शत्रु है, इसका पोपक ममत्व है, यह ममत्व ही जगत को नचा रहा है, न करने