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[ १८६ ] ५-३७२ जगत में जिसका जहां जो कुछ होता हो सो होतो
परन्तु तुम राग कर पाकुलित न होओ। हां ! यदि बन सके तो उपकार का कर्तव्य कर दो और बाद में उस उपकार को भूल जावो ।
卐 ॐ ॐ ६-३८२. राग की पीड़ा राग से शान्त नहीं होतोखून का दाग खून से नहीं धुलता, उस पोड़ा को शांति का उपाय भेदविज्ञान है।
म ॐ ७-३६४. राग हो दुःख है जब तुम्हें दुःख हो तब हमें दुःख है इसे मेटना चाहिये इस कल्पना के एवज में यह सोचो--यह राग है इसे मेटना चाहिये ।
८-३६४B. जो तुम्हें दुःख है वह राग को करामात समझो
और उसे छोड़ो, राग छोड़े बिना सुखी न हो सकोगे।
ह-४४३ राग करके अब तक तो सुखी हो नहीं सका फिर
भी तू वालू से तेल की आशा करता है।
१०-४६१, राग का लेरा भी आत्मा का अहित है। किसी