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________________ [ १७७ ] . से च्युत नहीं होते वे दृहप्रतिज्ञ धर्मवीर कहलाते हैं उनके भाव की उपासना से आत्मवल के विकास में उत्साह होता है। ५-७६१. धर्म में अनुराग हुए बिना धर्मिसेवा नहीं हो सकती और धर्मदृष्टि विना संसार से पार होने का पात्र नहीं हो सकता। 卐 ॐ 卐 ६-७६२. जिसकी चेष्टा से अहित हो वह धर्मी नहीं, धर्मी की चेष्टा किसो के अहित के लिये नहीं होती। ऐसे धर्मी को देखकर जिसे प्रमोद न हो प्रत्युत मात्सर्य हो उसका भवितव्य खोटा है। ७-८१२. जो निर्मल परिणामों से अपने आप का अवलो कन करते हैं उन्हें मित्रों की कोई आवश्यकता नहीं; वही पुरुप यथार्थ धर्म के अधिकारी हैं और उनकी सेवा अलौकिक दर्शन का कारण है। ८-८१४. धर्मात्मा पुरुष ही सच्चे मित्र हैं क्योंकि उन्हें संसार, शरीर भोगों से वैराग्य होने के कारण उनके
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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