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उसे नष्ट करो।
४-३५६. स्वाधीन कार्य शांति में अधिक सहायक है सत्समागम व सेश पराधीन है स्वाध्याय बहुशः स्वाधीन है।
ॐ ॐ ॥ ५-३८१. यदि प्रोग्राम बनाते ही हो तब केवल मनुष्य जीवन
का मत बनाओ, तुम स्वतन्त्र अविनाशी द्रव्य हो सदा का याने जब तक भवधारण शेप है. या अप्रमत्त दशा नहीं हुई तब तक का आत्मार्थ प्रोग्राम वनाओ, वह प्रोग्राम अहंता ममता संकल्प विकल्प का त्याग है।
६-४५३, स्वतन्त्रता प्रत्येक द्रव्य का सद्भाव सिद्ध अधिकार है अतः प्रत्येक प्रात्मा स्वतन्त्र हैं तथा जो राग अवस्था में परतन्त्र होता है वहां भी वह स्वतन्त्रता से 'परतन्त्र होता है।
ॐ ॐ 卐 ७-५८२. कौन किसका क्या चाहता है ? कोई किसी का कुछ
चाह ही नहीं सकता क्योंकि सर्व स्वतन्त्र द्रव्य हैं और स्वतन्त्र परिणाम और वह भी खुद ही में ।