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३५ स्वतन्त्रता
१-६५. मैं स्वार्थ के चाहने में या करने में स्वतन्त्र व समर्थ
हूँ, पदार्थ तो मैं चाह भी नहीं सक्ता न कर भी सक्ता । इसमें कोई ग्लानि की बात भी नहीं कि मैं स्वार्थार्थी या स्वार्थकारी हूँ, यह तो वस्तु का स्वरूप है, किसी भी पदार्थ के गुण अन्य पदार्थ के गुण में संक्रान्त नहीं होते।
२-३०१. यदि तुम्हें स्वाधीनता पसन्द है तो दूसरों को भी कभी आधीन रखने का प्रयत्न मत करो अन्यथा पछता
ओगे क्योंकि कोई भी प्राणी इच्छा के विरुद्ध बात बहुत दिन तक सहन नहीं कर सक्ता तव वह सत्याग्रह के संग्राम , में आवेगा और उसी की विजय होगी।
३-३५२. तुम्हारी चेप्टा का फल तुम्हीं में है और कारण
भी तुम्हीं में है उसे जानो और ज्ञानमान का आश्रय कर