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[ १७१ ] वीर्य गुण (अवस्थावृत्त) आत्मा का गुण है, गुण का अभाव होने पर आत्मो गुणी का भी अभाव हो जाता ।
११-८५. पुरुषार्थ कर्माधीन नहीं; क्योंकि वह आत्मगुण है। कर्म के उदय में वह गुण विकृतरूप परिणमता है और कर्म के अभाव में स्वभाव के अनुकूल परिणमता है।
१२-८६. जो पुरुषार्थ का महत्त्व स्वीकार नहीं करते उन्हें सांसारिक कार्यों में भी पुस्पार्थ छोड़ देना चाहिये; यदि ऐसा करे तब वह मोक्षमार्ग का पुरुषार्थ है, यदि न करे तो लोमड़ी जैसे खट्टे अंगूर हैं।
१३-६२. जो भवितव्य पर विश्वास कर पुरुषार्थ करना
छोड़ देते हैं उन्हें भवितव्य पर विश्वास नहीं क्योंकि भवितव्य में फल और पुरुषार्थ दोनों हैं, फल और पुरुपार्थ दोनों की भवितव्यता मानने वाला भवितव्यता का विश्वासी कहा जा सकता।