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[ १७४ ] ८-६५८. जैसे जाल में बँधा हुआ पक्षी बँधा ही है. स्वतन्त्र
नहीं इष्ट विहार भी नहीं कर सकता इसी प्रकार ज्ञानी भी है तो भी यदि विषय कषाय में बँधा हुआ है तब बँधा ही है स्वतन्त्र नहीं है और न सुख में विहार कर सकता
ॐ ॐ म ६-६६३.निरपराध मृग पासी में पड़ा है विवश है कोई
सहाय नहीं इसी तरह यह ज्ञानी आत्मा विषय कषाय की पासी में पड़ा है पराधीन होता है कोई सहाय नहीं हो सक्ता, खुद ही विज्ञान बल से विषय कषाय से निकल जाय तो स्वतन्त्र होकर सुखी हो जायगा।
॥ ॐ ॥ १०-६६०. अपनी स्वतन्त्रता स्वीकार किये बिना आत्मीय
अनंत आनन्द नहीं मिल सकता।
११-७१६. घर छोड़ा, आराम छोड़ा, आगमज्ञान किया,
श्री कुदकुदादि के शास्त्रों का अध्ययन किया फिर किसी की प्रशंसा में किसी चीज के देने में किसी के या धनवानों के आधीन बने तो धिक्कार है उस जीवन को ।
ॐ ॐ ॐ