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३२ चिन्ता
३२ चिन्ता
१-७३. जगत् न अपने अनुकूल हुआ और न होगा इसलिये किसी के प्रतिकूल होने पर चिन्ता करना व्यर्थ है व पाप का बंधक है।
॥ ॐ ॥ २-२६६. आगामी काल की चिन्ता सम्यक्त्व का अतिचार है, अत:-क्या होगा-यह भय मत करो और न अतिभविष्य के प्रोग्राम बनाओ, वर्तमान परिणाम पर ध्यान
३-३११. जो तुम्हें कोई चिन्ता हो तब अपने ज्ञायक स्व
भाव का चिन्तवन करा--जो अखड और अविनाशी है, इसके ध्यान के प्रताप से तत्काल चिन्ता नष्ट हो जाती है।
ॐ ॐ ॐ ४-३६६ देह तो बड़े प्रयत्न से मेटने पर भी मुश्किल से
मिटता, इसकी रक्षा की क्या चिन्ता करना, अपने कर्तव्य में लगे जावो ।
ॐ ॐ ॐ