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है तब यह असत् मार्ग नहीं परन्तु ध व जीवन का भी लक्ष्य साथ हो ।
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६- ३०७. परमात्मा या शुद्धात्मा का ध्यान कराने वाली कल्पना यद्यपि 'आत्मस्वभाव नहीं है तथापि इसकी उपकारशीलता को धन्य हैं जो यह कल्पना मुझे अमृत का पान करा कर अमर कर देगी और स्वयं राग का अशन न मिलने से भूखी रह कर अपना विनाश कर लेगी ।
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१०- २८७, परोपकार का फल भी स्वापकार है अतः परोपकार वहीं तक ठीक है जहां तक स्वापकार में बाधा न आवे |
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११ - २७०, पशुवों का चाम तो मरने पर भी काम आता, तेरे चाम का क्या होगा ? अरे ! जब तक आरोग्य है दीन दुखियों को सेवा किये जावेा और महापुरुषों का चैयावृत्य किये जावे |
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