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[ १६० ] ४-५६६. समाधिमार्गगामी का उपदेश व आदेश आत्मदर्शन आत्मज्ञान एवं प्रात्म चारित्र विषयक होता है।
॥ ॐ ॐ ५-५६७. यश चाहने वाले का उपदेश आदेश होता तो
रत्नत्रय विषयक किन्तु साथ ही साथ सामाजिक सेवा में प्रचुर भाग लेता रहता है।
ॐ ॐ ॐ ६-५६८. प्रशंसा का लोभी ऐसे भी कार्य कर देता है जिस में चाहे दूसरों का अपव्यय भी है। किन्तु उसका नाम आ जाना चाहिये।
७-५६६. उपकार के अहंकारी के द्वारा अपने भक्तों के लिये
समय समय पर ऐसी प्रेरणा मिलती रहती है जो तुम अमुक उपकार करो व उस कार्य में लगा देने के योग्य प्रशंसा भी की जाती है।
८-३४६. किसी के आदर्श साबित करने का भी ध्येय नहीं
रहता फिर भी पर की प्रसन्नता के अर्थ कार्य करने की प्रकृति रहती, यहां भी आत्मरक्षा नहीं, यदि कर्तव्य कर अविवादपूर्वक जीवन गुजारने का ध्येय इस अनित्य जीवन में