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[ १५८ ] . शुभोपयोगमय पर्याय है परन्तु ध्येय अखंड व शुद्ध है, अखंड शुद्ध ध्येय के ही कारण शुभोपयोगरूप खंडता
और अशुद्धता का अभाव होकर उपयोग अखंड और शुद्ध होजाता है।
१२-६१५. देखो विचित्रता ! खंड में अखंड विराजमान है, अशुद्ध में शुद्ध विराजमान है फिर वह खंड और अशुद्ध कब तक रहेगा ?
॥ ॐ ॥