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[ १५६ ] ४-२८२. रे मनोहर ! ध्यान रख समाज त्यागियों को सुखपूर्वक रखता है, उनके दुःख दूर करता है, उनकी सभी चिन्तायें करता है, पूजता है, आदर से देखता है, सर्वस्व सौंप देता है, फिर भी त्यागी यदि परिणाम मलीन रखें तो उन्हें निगोद में भी जगह न मिलेगी अर्थात् निगोद ही उन्हें शरण होगा या अन्य दुर्गति ।
५-२७३. अलिप्त रह कर शुभोपयोगी रहो अन्यथा शुद्ध व शुभ दोनों से व्युत रहोगे।
+ ॐ ६-१२. शुभोपयोग का साधन संस्था, शिष्यगण, सहवासी
जन भी मेरी ही कल्पना से संक्लेश में निमित्त हो जाते हैं। अपने को सावधान रखो।
७-८०४. साधु, परमात्मा, ज्ञान व ज्ञानी की भक्ति तथा करुणा भाव ये शुभोपयोग है । पांच इन्द्रियों के विषयों का सेवन, हिंसा झूठ चोरी कुशील तृष्णा के परिणाम ये अशुभोपयोग हैं, अशुभोपयोग दुर्गति का कारण है उस की निवृत्ति में शुभोपयोग आदरणीय है।