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३० शुभोपयोग
१-४४२. मनोहर ! अशुभोपयोग से बचने के लिये कुछ न
कुछ कार्य करने की आवश्यकता तो अवश्य है परन्तु जो कार्य दूसरों की प्रतीक्षा और आशा पर निर्भर है उसे मत करो, तब स्वाधीन कार्य क्या है ?-लेखन व स्वाध्यायं ।
卐 ॐ ॥ २-३६०. नाट्य होने दो पर नाट्य तो समझो, शुभोपयोग करते हुए भी उसे नाट्य समझो, यदि नहीं समझ सकते तो हम तो फिर मिथ्यात्व समझते हैं ।
ॐ ॐ ॐ ३-३०५. यदि तुम कल्याण व उन्नति चाहते हो तो दूसरों के कल्याण व उन्नति में ईर्ष्या मत करो प्रत्युत उनके कल्याण व उन्नति को भावना रखो क्योंकि मात्सर्यभाव स्वयं अकल्याण है, इस अशुभोपयोग के रहते उन्नति हो ही नहीं सकती।