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[ १५४ ] १४-७५८. जैसे तीर धनुष के प्रयोग से छोड़ दिया तब वह
तीर वापिस नहीं आसकता, इसी तरह जो वचन मुख से निकल गया वह वापिस नहीं आ सकता। देख !! जब तक वचन नहीं निकाला तब तक तो वह तेरे वश में है किन्तु वचन निकलने पर तुम उसके वश में हो जावोगे, अतः जब बोलो तब हितमित प्रिय वचन बोलो।
॥ ॐ ॥