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२६ योग
१-२०४. सोचना आश्रव (कर्मवंध का कारण) है, यदि सोचना ही है तो निजशुद्धात्मा या परमात्मा का चिन्तवन करो।
9 ॐ २-२०५. बोलना आश्रय है, यदि बोलना ही हो तो ऐसे
शब्द बोलो जिससे शुद्धज्ञान (वैराग्य) का विकास हो ।
३-२०६. चेष्टा आश्रव है, यदि चेष्टा करना ही पड़े तो
दोनों प्रकार के संयमरूप चेष्टा करो।
४-२७१. काम वह करो जो सबको जानकारी में किया जा सकता हो ।
ॐ म ५-२७२. बात वह बोलो जिसके बोलने के बाद गुप्त बनी रहने की इच्छा न करना पड़े। .
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