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[ १४६ ] १३ - २०६. इष्ट वियोग होने पर भेद विज्ञान से विषाद परिणाम न होने देना तो नपस्या है ही, परन्तु इससे भी अधिक तपस्या यह है— जो इष्ट समागम होने पर भेद विज्ञान से ह परिणाम न होने देवे, अपने उपेक्षास्वभाव की रक्षा करे |
5 ॐ फ
१४- ३०६. इष्ट समागम में हर्षाभाव की तपस्या करने वालों कोष्ट समागम में विपादाभाव की तपस्या करना सरल हैं |
ॐ क १५-३८४, जैसे माँगी हुई चोज में आत्मीयता नहीं रहती क्योंकि वह थोड़े समय ही पास रह सकती इसी तरह कर्मोदय से प्राप्त वैभव में ज्ञानी के आत्मीयता नहीं रहती क्योंकि उसका संयोग क्षणिक और पराधीन है । ॐ ॐ १६ -८८६. वियोग से तो उद्धार होता है परन्तु संयोग से नहीं हो सकता, देख ! कर्मों के वियोग से सिद्ध परमात्मा वनता, ज्ञानावरण कर्म के वियोग से सर्वज्ञ बन जाता और आत्मस्वरूप के अतिरिक्त जो भाव हैं वे विभाव हैं उनके वियोग से सत्यसुख मिलता है । वियोग दुख की