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1 २८ संयोग वियोग
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१-१८. किसी वस्तु के संयोग के लिये शोक करना इसलिये
व्यर्थ है कि संयोग में शान्ति नहीं, स्वाधीनता नहीं और किसी वस्तु के वियोग में शोक करना इसलिये व्यर्थ है कि पर की रक्षा अपने आधीन नहीं, पर का अपने से तादात्म्य नहीं; तथा वियोग में अपने स्वरूप की हानि नहीं।
4 ॐ ॥ २-१०८. वियुक्त वस्तु के संयोग होने का नियम नहीं, परन्तु
संयुक्त वस्तु का वियोग नियम से होता है।
३-१०६. कर्मभूमि के मनुष्यों में इष्ट वस्तु का वियोग होता
ही रहता तो...वहां कल्याण भी अपूर्व होता अर्थात् वे मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं व सभी स्वर्गों में व वेयक अनुदिश, अनुत्तरों में पैदा हो लेते हैं । भोग भूमि के मनुष्यों के इष्ट वियोग नहीं होता तो वे अधिक से अधिक दूसरे स्वर्ग तक ही पैदा हो पाते हैं ।
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