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[ १४५ ] खुद ही नष्ट कर सकता है।
॥ ॐ 卐 १५-७०६. लोक में संसार परम्परा बढ़ाने वाले ही बहुत हैं, मुमुक्षु पुरुष बिरला है अतः दूसरों के कर्तव्यों को देख कर अपना निर्णय करना धोखे से खाली नहीं है, अतः अपने को ही देख फिर अपने अन्तःपथ का निर्णय कर।
१६-६११. अकुशलता ! अकुशलता है कहाँ ? आत्मदृष्टि
नहीं तो सर्वत्र अकुशलता है, एक निज अद्वैतदृष्टि में तो द्वितीय का संपर्क ही नहीं क्या आकुलता होगी ? क्या अकुशलता होगी ?...,...परन्तु हो आत्मदृष्टि ।
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