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[ १४० ] धीनता नहीं अतः स्वाध्याय में विशेष उपयोग लगाकर अपने मानव जीवन को सफल करो और आत्मज्ञानी बन कर अब झंझटों की रस्सी काट दो।
१७-८६८. आत्मज्ञानमय भावना उत्कृष्ट तप है, अरे 'केवल तप ही नहीं आत्मरुचिमूलक होने से दर्शन भी है और रागद्वषनिवृत्तिपरक होने से चारित्र भी है तथा ज्ञान तो है ही, अतः आत्मज्ञानमय भावना से चारों आराधनायें हो जाती हैं।
१८-६२५. मेरे (अपने) को समझो उसे कोई इष्ट अनिष्ट
नहीं और न इसी कारण कोई आकुलता है।