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[ १३६ । १२-६१८. लोग कहते हैं- हमें अमुक पदार्थ जान से प्यारा है, वे सब झूठ कहते हैं, क्योंकि परीक्षा करने पर वे जान की रक्षा का ही प्रयत्न करते हैं, किन्तु यह बात सत्य है जो जान से प्यारा ज्ञानानुभव है, क्योंकि अध्यात्मयोगी (जिनके ज्ञानानुभव है) परीक्षा के समय जान को उपेक्षा करते हैं और ज्ञानानुभव में तन्मय होते हैं ।
9 ॐ 卐 १३-८३६. शान्तिमार्ग के प्रयोजनभूत तत्त्वों को छोड़कर
और और दुनियां की बातों की जानकारी में जो लट्टू हो रहा है वह बड़ा अज्ञानी है और जिसन शान्ति के आधारभूत निजब्रह्मत्त्व को देखा वह ज्ञानी है ।
॥ ॐ ॥ १४-८५०. आत्मज्ञानी ही वीर है और सच्चा स्वपरोपकारी है।
॥ ॐ ॥ १५-८६६. व्यापारियों का प्रयोजन एक धन प्राप्ति है तो ज्ञानाभ्यासी भव्य का प्रयोजन तात्विक शांति ही है, आत्मज्ञान शांति का मूल है।
१६-८६७. आत्मज्ञान के साधक सत्संग और स्वाध्याय है,
सत्संग तो पराश्रित भी है परन्तु स्वाध्याय में वह परा