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[ १३७ । कीमत कुछ भी नहीं की जा रही है; जो ज्ञान की कीमत समझ लेता है वह शीघ्र ही अनर्थ्य पद पा लेता है ।
५-२६४. एक ज्ञानमान के स्वाद में कोई विपत्ति नहीं, जहां
इससे चिगे तहां संतोष का नाम नहीं ।
६-३००. जो पुरुष यह कहते हैं कि मेरे जिह्वा नहीं तो उस
की बात मान्य नहीं, क्योंकि जिस जिह्वा से कह रहा है वही नो जिह्वा है; इसी प्रकार जो यह कहे कि मेरे आत्मा को ज्ञान नहीं तो उसकी बात अमान्य है, क्योंकि जो ऐसा जान रहा है वही तो आत्मा है ।
७--३३१. संसार जाल महागहन है, इमसे निकलने के लिये
ज्ञानभावना रूप महान् बल का प्रयोग करो ।
८-३५०. मनोहर ! मन रमाने का स्वाध्याय से उत्तम अन्य
साधन नहीं; 'समागम में 'प्रकृति विरुद्ध मनुष्य भी मिल जाते हैं - तब संक्लेश की संभावना है, अतः अपना लक्ष्य सर्वप्रथम ध्यान व द्वितीय - स्वाध्याय रखो । समय पर जो वैयोवृत्य, वात्सल्य व उपकार हो जाय अच्छी