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[ १३० ] करते हो तब बतायो दुःख का उपाय करने से सुख कैसे होगा।
१६-६६०. त्याग व्रत चारित्र धारण करके जो मनुष्य विषय
काय में लीन होता है वह अधम निन्ध है, कायर है, जैसे रण के लिये उद्यत पुरुष शस्त्रधारी होकर भी रण छोड़ भागे तब वह निन्द्य ही है।
१७-७०१. कुछ त्याग की ओर मन चलाओगे और कुछ सामाजिक संस्थाओं की ओर मन चलायोगे तो किसी
ओर के पूर्ण न रहोगे अतः यही ठीक है कि जिसका संकल्प किया, वेश किया उसे ही पूरा निभाओ, क्योंकि त्याग में पराधीनता नहीं, सामाजिक बातों में तो बहुत ही पराधीनता है।
.१८-७०२. राग छोड़ते हो तो बिल्कुल छोड़ने काही प्रयत्न करो, उसकी लपेट ही रखने में क्या रक्खा ?
ॐ ॐ ॥ १९-७२०. जो भाव बहुत दिनों से भी बनाया गया हो या कुछ उद्यम भी कर लिया हो परन्तु यदि उसमें आत्मा