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[ १२८ ] ७-१३८. यदि कोई मधुर शब्द निरंतर सुनता ही रहे तो
मधुरता का आनंद नहीं रहता अतः मनोज्ञशब्दानन्द के लिये भी तत्त्याग ओवश्यक है जब विषय त्यागपूर्वक ऐहिक सुख होता तो निरीहतापूर्वक विषयत्याग से अनंत सुख होगा ही।
८-१७२. दान का दूसरा नाम त्याग भी है, क्या ही अच्छा
होता जो लोक में दान शब्द का व्यवहार न करके त्याग शब्द का व्यवहार किया जाता, संभव था जो त्याग शब्द के प्रयोग से मनुष्य लक्ष्य पर शीघ्र पहुंच जाता।
६-१७३. अथवा मोहियों की चेष्टा विलक्षण है यदि त्याग
शब्द भी व्यवहार में आता तो वह भी रूहि शब्द कहलाने लगता अन्यथा द्वन्द्व (दन्द) शब्द का अर्थ 'संयोग' छोड़कर दुःख ही में क्यों रूढ़ हो गया। .
+ ॐ 卐. . १०-२६२A. मुग्धजन यदि धर्मार्थ पर वस्तु का त्याग
करते हैं तो निजक्षेत्र से अन्यत्र स्थित ही पर वस्तु को छोड़ते हैं।