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से अनन्त सुख होगा ही।
४-१३५. यदि कोई निरन्तर खाता रहे तो वह भोजन के
योग्य नहीं रहता, अतः भोज्यसेवन के लिये भी भोज्यत्याग करना जरूरी है; जब भोज्य त्याग से ऐहिक सुख भी होता तो निरीहतापूर्वक भोज्यत्याग से अनन्त सुख होगा ही।
ॐ ॐ ॐ ५-१३६. यदि कोई सुगंधित पदार्थ निरन्तर नासिका पर रखे ही रहे तो फिर उसे सुगन्ध का आनन्द नहीं आता; अतः गंधानंद के लिये भी घ्राणविपयत्याग जरूरी है। जब गंधत्याग के कारण तद्विपयक आनंद आता तब निरीहतापूर्वक विषयत्याग से अनन्तसुख होगा ही।
६-१३७, यदि कोई रम्य वस्तु को निरंतर देखता ही रहे
तो आनंदहीन हो जाता अतः रम्यावलोकनानंद के लिये चनुर्विषय त्याग आवश्यक है जब विषय त्याग पूर्वक ऐहिक सुख होता तो निरीहता पूर्वक विषय त्याग से अनंत सुख होगा ही।