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२४ त्याग
१- ११३. परम अभीष्ट की सिद्धि इष्ट कल्पना के त्याग में होती है और उस समय अभीष्ट सिद्धि हो चुकी यह
कल्पना नहीं रहती परन्तु उसके निराकुल आनंदमय सत्फल का भोक्ता अवश्य होजाता जो क्षीणाक्षीण मोही सम्यग्दृष्टि के लक्ष्य (ध्येय) का विषय है ।
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२- १२०. आत्मीय व शारीरिक स्वास्थ्य का रक्षक, विषय कषाय का त्याग है; विषय कषाय स्वास्थ्य (स्वस्थिति)
का घातक है, अतः दोनों प्रकार का स्वास्थ्य चाहने वाले
अन्य पथ्य व औषधि न खोजें और मूल तत्व पर पहुंचें ।
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३ - १३४. यदि कोई निरन्तर स्त्रीप्रसंग करे तब वह स्त्रीप्रसंग के योग्य नहीं रहता, अतः विषयानन्द के अर्थ भी विषय त्याग करना अर्थात् ब्रह्मचर्य से रहना जरूरी है; जब विपयत्याग से ऐहिक सुख भी होता तब पूर्ण विषय त्याग