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४ - १६६, नम्रता द्वारा भी मान की पुष्टि हो सकती है अतः नम्रता द्वारा भी यह निर्मान है यह सिद्ध नहीं होता । फ्र ॐ फ्र
चीज का मान
५ - १६०. यदि मान ही करना है तो ऐसी करो जिससे बढ़कर तीनों लोकों में अन्य पदार्थ नहीं,
वह है - अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख व वीर्य इस चतुष्टयमय आत्मा से भिन्न परद्रव्य को तुच्छ माना ।
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६ - २१०. निरभिमानता की परीक्षा अभिमान या अपमान का
निमित्त मिलने पर होती, प्रशंसा के काल में तो सभी नम्र से बन जाते ।
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७-२६४, B कपायों में प्रबल मनुष्य के मान है अतः इस मिथ्या जगत में बड़पन मत चाहो यहां किसी का कुछ नहीं, न रहता है, सब अपने अपने कषाय के परिणमन हैं । ॐ फ्र ८- ७४५, मानी के छाप नहीं अर्थात् मानी पर किसी के सद्गुणों की छप नहीं पड़ सकती। दूसरों का तुच्छ सम
ना और तिरस्कृत करना मानी के बायें हाथ का काम है, वास्तव में तो मानी अपनी चेष्टाओं को करके अपना