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२१ मान कषाय
१-४६. मानी पुरुप सबको छोटा देखते पर सब लोक मानी
का छोटा देखने जैसे पहाड़ की चोटी पर चढ़ा हुआ मनुष्य नीचे चलने वाले सब लोकों का छोटा देखता पर सब लोक चोटी पर चढ़े हुए का छोटा देखते, वस्तुतः महान हो जाने पर छोटे बड़े की कल्पना ही नहीं रहती।
२-६४. अतस्तत्व की उपलब्धि के लिये जब नरदेह में रह कर भी मैं मनुष्य है यह अध्यवसान त्याज्य है तब अन्य अहंकार तो सुतरां वाधक सिद्ध हो जाते ।
३-१०५. जब तक रति अरति का विकल्प है तब तक परम
तत्व प्राप्त नहीं और जब परमतत्व की प्राप्ति है तब वह विकल्प नहीं, पूर्वपक्ष में तो अभिमान किस बात पर किया जाय, द्वितीय पक्ष में अभिमान करने का अवसर ही नहीं अतः सिद्ध है अभिमान निपट अज्ञान है।
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