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। ११४ ] प्रवृत्ति न रखो और न द्वष भाव रखो परन्तु निन्दा
और क्रोधवृत्ति को स्वपर घातक समझते रहो। ४-१६८. क्या ऊपरी शांति से क्रोध की पुष्टि नहीं होती ?
अर्थात् हो सकती है जैसे क्रोध के आवेश में भी ऐसे वचन निकल सकते हैं कि "आप ज्ञानी हैं जो आप करें सो ठीक है" आदि, अतः ऊपरी शांति से शांति का फैसला करना या करवाना यथार्थ नहीं हो सकता, इसका निर्णय तो केवली के ज्ञान में है।
॥ ॐ + ५-१८६. हे आत्मन् ! यदि क्रोध ही करना है तो अपने पर क्रोध करो क्योंकि कषाय युक्त यह आत्मा ही आत्मा का शत्रु है । अतः शुद्धात्मा व विभाव ऐसे दो टुकड़े कर दी व विभाव को मूल से नष्ट कर दो।
६-२०६. शांति की परीक्षा क्रोध का निमित्त मिलने पर होती, अभीष्ट विषय साधन मिल जाने पर तो सभी शांत बन जाते। .
॥ ॐ है ७-५४३. किसी बात पर गुस्सा होने में तुम्हारा साक्षात विनाश हो रहा है उसे क्यों नहीं देखते, पर का सुधार