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विगाड़ ही तुम क्या कर सकते हो अपने पर कुछ दया तो करो ।
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८-७६४, क्रोध एक महान अंधकार है जिसमें सत्पथ नहीं सूझता इसीलिये क्रोधी खुद मर मिटता और दूसरों के परेशान करता ।
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६-७६५. क्रोध एक अग्नि है जिससे आत्मा के सब गुण
जले से है। जाते हैं । क्रोधी के जीवन में शान्ति नहीं प्राप्त
हो सकती - एक क्रोध को छोड़ो - सब मामला साफ होता चला जावेगा।
东海卐
१०- ७६६. क्रोध के समय मौन रहना या समय टालना उचित है,... और... कुछ समय श्रात्मस्वभाव और जगत का यथार्थ स्वरूप व अपनी मुसाफिरी का विचार करो ।
ॐ फ ११-८४०, रे क्रोध ! तेरे में बड़ी ज्वाला है सारे गुण फूक देता है !... तू उस ज्वाला में नहीं जल पाता, अग्नि भी तो ब्वाला में स्वयं-जल मर जाती है; तू अग्नि ही जैसा बन