________________
[ ११२ ] अपरिचित अन्य की श्रेणी में दाखिल कर विश्रांति पाले।
१३-४८४. काम, क्रोध, मान, माया, लोभ के परिणाम होते
समय यह तो विचारो कि द्रव्यलिङ्गी तपस्वी साधु के अव्यक्त मिथ्याभाव तो मिथ्यात्व गुणस्थान सम्बन्धी सभी प्रकृतियों तक का बंध करा देग है तो इस समय क्या तेरे बंध नहीं हो रहा है ? इस का कुफल भोगना होगा ?
१४-७४१. जब तुम्हारे कषाय की तीव्रता हो तव आप चुप्पी साधलो क्योंकि उस समय के निकले वचन दूसरों के अहित और क्लेश करने वाले होंगे जिससे तुम्हें भी पछताना होगा।
१५-१७१. वस्तुतः चारों कषायों का अभाव छमस्थ के
अगम्य है।
१६-८१६. हम सब प्राणियों में माया (पर्याय) कृत भेद
चाहे अनेक हों परन्तु सब में मूल चैतन्य समान है फिर किससे ईर्ष्या की जावे ? किससे विरोध किया जावे ?
ॐ ॐ 卐