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कर दो, चंचलता का कारण कपाय है – उससे उपयोग हटावो - उपयोग से उसे हटावो ।
फॐ फ
१०-५२२. पाप के कारण भूत कपाय हैं अतः कपाय ही पाप हैं, फिर इनके कार्य में जो हिसादि प्रवृत्तियाँ हैं वे उपचार से पाप माने गये हैं । अतः हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह पाप से बचने वालों को कपाय का परित्याग करना चाहिये |
फॐ फ
११-५२४. हे आत्मन् ! तूकपाय के उदय में यह नहीं मालूम करता कि यह दुःखदाई है परन्तु कपाय के समय आकुलित होता रहता है व उसके बाद दुखी होने लगता, कपाय करने वाला मनुष्य अपना पुण्य क्षोण करता है व
पाप बाँधता है जिसके फल में दुर्दशा होती है इस लिये कहीं कुछ हो तुम न क्रोध करो न मान माया लोभ करो, और न कुछ हित विचारो |
ॐ
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१२ - ५४१. ईर्ष्या का भाग परिचित मनुष्य के प्रति होता है,
अरे वह परिचित भी तो अन्य आत्माओं की तरह अन्य
है यदि और कुछ नहीं हो सकता तो उस परिचित को