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________________ [ १०५. ] व्याकुल नहीं होने और जो पर का अपराध सोचते रहते वे विना विपदा के ही दुखी बने रहते हैं । ॥ ॐ ॥ ६-२०३. यदि किसी में दोप भी हों तो दोषाश्रय होने से दोपी को दुग्वी और व्यापात्र समझो उससे ग्लानि न करो। ७-२३५. शुद्धात्मतत्त्व का साधन संयम है, संयम का साधन शरीर है, शरीर का साधन आहार है, जो प्रत्येक साधनों का लच्य शुद्धात्मतत्व को बनाता है वह शिवपथिक है । ॥ ॐ ॐ ८-२८४. निज क्रिया का फल निज में ही होता है तब निज चेष्टा का फल पर में है ऐसी दृष्टि ही संसार है। -५३७. जो क्रिया होती है, होओ, परन्तु अपने आपकी दृष्टि क्षण भर भी न छोड़ो, यही दृष्टि तुम्हें दुःख समुद्र से पार कर देगी। १०-५३६ कहीं इप्ट स्थान के विपरीत दिशा में जाने से इष्ट स्थान की प्राप्ति हो सकती है ? नहीं, तो इसी
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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