________________
[ १०४ ]
। १८ दृष्टि
१-२३. संसार में कोई वस्तु न सुन्दर है न असुन्दर है,
तुम्हारा रागभाव सुन्दर और असुन्दर बना देता ।
२-५५, जो धर्म के लिये व्यापार करता है वह सद्गृहस्थ है
और जो व्यापार के लिये धर्म करता है वह दुर्गति का पात्र है।
9 ॐ ३-६० कल्याण को कठिन और सरल दोनों ही समझो
तब योग्य पुरुषार्थ होगा, सिद्धि होगी।
४-६३. साधुजनों के आहार और बिहार का भी प्रयोजन
शुद्ध आत्मतच्च की उपलब्धि सिद्ध करना है; क्यों कि वे इहलोक व परलोक दोनों के सुख से निरपेक्ष हैं । अपने में इस निरपेक्षता के अंशों को खोजो।
५-७८. अपने दुखी होने में जो अपनो अपराध सोचते वे